Friday, October 30, 2009

There once was a VIlia

There once was a VIlia, a witch of the wood,
A hunter beheld her alone as she stood,
The spell of her beauty upon him was laid;
He looked and he longed for the magical maid!
For a sudden tremor ran,
Right through the love bwildered man,
And he sighed as a hapless lover can.
Vilia, O Vilia! the witch of the wood!
Would I not die for you, dear, if I could?
Vilia, O Vilia, my love and my bride,
Softly and sadly he sighed.
The wood maiden smiled and no answer she gave,
But beckoned him into the shade of the cave,
He never had known such a rapturous bliss,
No maiden of mortals so sweetly can kiss!
As before her feet he lay,
She vanished in the wood away,
And he called vainly till his dying day!
Vilia, O Vilia, my love and my bride!
Softly and sadly he sighed, Sadly he sighed, "Vilia."

There once was a VIlia

There once was a VIlia, a witch of the wood,
A hunter beheld her alone as she stood,
The spell of her beauty upon him was laid;
He looked and he longed for the magical maid!
For a sudden tremor ran,
Right through the love bwildered man,
And he sighed as a hapless lover can.
Vilia, O Vilia! the witch of the wood!
Would I not die for you, dear, if I could?
Vilia, O Vilia, my love and my bride,
Softly and sadly he sighed.
The wood maiden smiled and no answer she gave,
But beckoned him into the shade of the cave,
He never had known such a rapturous bliss,
No maiden of mortals so sweetly can kiss!
As before her feet he lay,
She vanished in the wood away,
And he called vainly till his dying day!
Vilia, O Vilia, my love and my bride!
Softly and sadly he sighed, Sadly he sighed, "Vilia."

Thursday, September 17, 2009

Three Russian cities to host Indian film weeks

Vinay Shukla
Moscow, Sep 15 (PTI) Three Russian cities including
Moscow are hosting Indian film weeks within the Year of India
fest in the country.
Russian viewers of the elder generation, nostalgic of the
days of Raj Kapoor would be able to meet with the Kapoor
siblings Randhir and Rajiv Kapoor and watch his all-time hits
"Ram Teri Ganga Maili" and "Sangam".
During the film weeks in the Volga towns of Nizhny
Novgorod and Cheboksary till September 25 the younger
generation of Russians would also enjoy the all-time Bollywood
hit in ex-USSR like Subhash Babbar's 'Disco Dancer' starring
Mithun Chakraborty, as well as watch latest movies including
director Madhur Bhandarkar's "Page 3", "Fashion" and "Traffic
Signal", Neeraj Pandey's "A Wednesday".
Bhandarkar, actress Mugdha Godse and Producer Ganesh
Desai will also interact with the Russian Bollywood fans
during the Indian film fest.
Even after the Soviet collapse, Indian movies are very
popular in Russia, which has a 24-hour 'India TV' channel as
part of premium package offered by a number of DTH and cable
operators.
However, weaker sections of the society, specially the
pensioners would be able to watch Indian movies during the
films weeks free of charge on "first come, first serve" basis.

listen

There was a wall through which I could not see
There was a door, to which I found no key,
For a while there was you and me
And then there was no more of me and thee.
Edward J. Fitzgerald

Sunday, September 13, 2009

दोबारा रुस के राष्‍ट्रपति के रुप में देश की बागडोर संभाल सकते पुतिन

रूस के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री व्‍लादीमीर पुतिन ने आखिरकार संकेत दे ही दिए हैं कि वह दोबारा रुस के राष्‍ट्रपति के रुप में देश की बागडोर संभाल सकते हैं। इस बाबत खबरनवीसों के सवालों का जवाब देते हुए पुतिन ने क‍हा कि जिस तरह आपसी समझ के साथ उन्‍होंने 2008 के चूनावों में सत्‍ता की बागडोर मेदवेदेव को सौंप दी थी। उसी तरह आगे भी समायोजन हो जाएगा।
उन्‍होंने कहा कि हमारी राजनीतिक विचारधारा और रक्‍त एक हैं। उम्‍मीद है कि हम एक समझौते पर पहुंच जाएंगे। पुतिन लगातार दो बार देश के राष्‍ट्रपति रह चुके हैं। रुस के संविधान में राष्‍ट्रपति दो से ज्‍यादा बार इस पद पर नहीं रह सकता। इसी कारण पुतिन गत वर्ष के चुनावों में मेदवेदेव के समथर्न में मैदान से हट गए थे। पुतिन ने कहा कि हम लोग समय के अनुसार वस्‍तुस्थिति का विषलेषण करेंगे और उसी के हिसाब से निणर्य लिए जांएगे। एक अन्‍य सवाल के जवाब में पुतिन ने कहा कि उनके और मेदवेदेव के बीच को सत्‍ता संघर्ष नहीं है। क्‍या हम लोग गत चुनावों में आपस में लडे थे? इसी तरह हम 2012 के चुनावों में भी आपस में नहीं लडेंगे। गौरतलब है कि 2012 में मेदवेदेव का कार्यकाल समाप्‍त हो रहा है। रूस के नए संवैधानिक नियमों के अनुसार 2012 के बाद 6-6 वर्षों के दो कायकाल के लिए नया राष्‍ट्रपति पद संभाल सकता है। पहले यह चार कार्यकाल के लिए तय था मगर नियमों में बदलाव कर य‍ह दो कायकालों में तबदील किया गया। यदि पुतिन दोबारा 2012 में क्रेमलिन की गददी संभालते हैं तो वे 2024 तक इस पद बनें रह सकते हैं। जानकारों के अनुसार रुस की वा‍स्‍तविक शक्तियां अभी भी पुतिन के ही हाथों में हैं और मेदवेदेव केवल उनका मोह‍रा हैं। हालांकि पुतिन इसे सिरे से खारिज करते हैं वे कह‍ते हैं कि देश की बागडोर मेदवेदेव के हाथ में हैं। यदि कोई गलतफहमी का शिकार है तो उसे नींद से जाग जाना चाहिए। इस बात से कोई इत्‍तेफाक नहीं की शीत युद्ध की समा‍प्ति के बाद अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर पुतिन ने रुस को खडा करने में कामयाबी हासिल की और आर्थिक हालत सुधारने के लिए पुराने सभी नियमों को बदल का रख दिया।

बलातकार के आरोप में पत्रकार गिरफ्तार

कोलकाता। एक महिला से बलातकार के आरोप में एक पत्रकार को एक अन्य व्यक्ति के साथ गिरफ्तार किया गया।
पुलिस ने बताया कि साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट के लिए काम करने वाले पत्रकार एसएनएम आब्दी को उसके मित्र सैफुल इस्लाम के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उसे बीती रात अपने न्यू अलीपुर स्थित आवास में एक महिला से बलातकार के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
पुलिस ने बताया कि 29 वर्षीय महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि आब्दी ने नौकरी के लिए साक्षातकार के सिलसिले में उसे उसके घर पर आने को कहा, लेकिन जब वह उसके घर गई तो उसने सैफुल के साथ मिलकर उसके साथ बलातकार किया।
उन्होंने बताया कि आब्दी को महिला द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर उसके आवास से गिरफ्तार किया गया था।

Saturday, September 12, 2009

Russia denies Arctic Sea carried missiles to Iran

Moscow, Sept 8, Russia today vehemently denied that
a cargo ship whose supposed seizure by pirates sparked an
international mystery was carrying sophisticated Russian
anti-aircraft missiles bound for Iran.
A British newspaper reported at the weekend that the
Arctic Sea had been carrying a batch of S-300 missiles, as
conspiracy theories swirl over the ship's mysterious
disappearance and reappearance.
"Regarding the S-300s on board the Arctic Sea, this is
absolutely untrue," Russian Foreign Minister Sergei Lavrov
told reporters, when asked if the ship was secretly carrying
the advanced Russian-made missiles to Iran.
The Arctic Sea, a Maltese-flagged vessel with a Russian
crew, was hijacked near Sweden in late July before it was
recovered by the Russian navy in the Atlantic Ocean several
weeks later.
The seizure of the ship in one of Europe's busiest
shipping lanes, the huge international effort to recover it
and the detention of its crewmen after they returned to Russia
have prompted speculation that it held a secret cargo.
Officially the ship was carrying a load of timber worth
USD 1.7 million dollars from Finland to Algeria, but
speculation has raged that it was carrying weapons or even
nuclear materials.

Thursday, August 27, 2009

पार्टी तो गई

भाजपा तो टूट‍ती ही जा रही है और राजनाथ हैं कि अडे हुए हैं और कह रहे हैं कि वे पार्टी को बिखरने नहीं देंगे। शायद ये सब हवाई है। और अब तो यशवंत भी चुप्‍पी तोड बोल ही पडे कि कंधार मामले कि पार्टी के सभी बडे नेताओं को जानकारी थी। यशवंत सिन्हा ने कहा कि आडवाणी केबिनेट की मीटिंग में शामिल थे और हर फैसले के बारे में जानते थे। लेकिन भाजपा तो हीरो बनना चाहती थी और लोगों की साहानुभूति हासिल करना चाहती थी मगर कहते है कि घर का भेदी ही लंका को ढहा देता है। जसवंत का साथ देना सही भी था क्‍योंकि पार्टी में दोनों की लगभग वही हालत थी जो उन्‍हें अखरती थी। यशवंत ने खुलकर कहा कि किताब लिखना कोई अपराध नहीं है सभी अपनी बात कह सकते हैं लेकिन पार्टी को तो एक अदद मौके का इंताजार था कि बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। शौरी भी बगावती हैं, कुलकर्णी भी राम- राम कह गए और क्‍या चाहते हैं राजनाथ ये वही जाने पर पार्टी तो गई।

Thursday, August 20, 2009

ये तो होना ही था

आखिर जसवंत सिंह ने मान ही लिया कि वे एक फौजी हैं न कि संघी। बात तो कायदे की है शायद भाजपा ऐसे ही तंतूओं से मिलकर बना है और संघी समझी जाने वाली विचारधारा का कोई खास स्‍‍थान यहां नहीं है। पार्टी से निकाले गए इस बडे नेता ने सही ही तो कहा है और पार्टी की हकीकत बयां की है अगर लोग भाजपा के भ्रम में फंसते हैं तो यह गलत होगा। कायदा तो ये भी है कि आरएसएस किसी को भी कुछ नहीं सिखा सकता। संघ में भी भ्रष्‍ट लोगों की कमी नहीं है। हिंदूवादी चश्‍में से देश को देखना दूनिया को देखना इनकी एक बीमारी है और इस बीमारी से सारा देश ही प्रभावित होता है। रामराज का दिवा ख्‍वाब दिखना इनका स्‍टंट ही तो है। समय कभी पीछे नहीं जाता और ये लोगा समय की धारा को पीछे ले जाने का ही काम करते हैं। पार्टी में आडवाणी को बाहर का रास्‍ता क्‍यों नहीं दिखाया गया जब वे जिन्‍ना का कसीदा पढे थे। सच तो ये है कि तब आडवाणी सही थे लेकिन सच तो संघ की बरदास्‍त से बाहर की चीज है वे सच का सामना नहीं कर सकते। यही तो रोना है। अपनी पुस्तक 'जिन्ना-भारत, विभाजन, आजादी' पर सफाई देते हुए जसवंत ने कहा भी है कि मैंने पुस्तक लिखकर पार्टी के सिद्धांतों का कोई उल्लंघन नहीं किया है। मैं किताब लिख रहा था यह सबको पता था और बहुत पहले पता था। आडवाणीजी की आत्मकथा 'मेरा देश, मेरी जिंदगी' का जिस दिन विमोचन हुआ था उसी दिन मैंने मंच से कहा था कि मैं जिन्ना पर पुस्तक लिख रहा हूं। लेकिन घुन तो पिस गया न।

Thursday, July 23, 2009

ये जिंदगी की हार नहीं

वो कहता है हार जाएगा तू
मेरा मानना है हार से ही तो जीत का रास्‍त मिलेगा
बस साहस करना है मुझे एक कदम उठाने का
लोग तो कहते हैं और कहते ही रहेंगे
जंगल घना हैं तो कल्‍लर उतना ही शानदार होगा
मुझे तो बस चलना है अपनी पीठ पर हिमालय लाद कर
लोग तो कहेंगे तो कहने दो पागल हैं वे
मैं वो युग हूं जो शुरु है
अंत किसने देखा है
यहां तो प्रारंभ की जरुरत है। और मैं वहीं कर रहा हूं।

Saturday, May 23, 2009

आप के लिए

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दिल की दवा करे कोई
शर'अ-ओ-आईन पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई
चाल जैसे कड़ी कमाँ का तीर
दिल में ऐसे के जा करे कोई
बात पर वाँ ज़ुबान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई
न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई
रोक लो गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ग़लत करे कोई
कौन है जो नहीं है हाजतमंद
किसकी हाजत रवा करे कोई
क्या किया ख़िज्र ने सिकंदर से
अब किसे रहनुमा करे कोई
जब तवक़्क़ो ही उठ गयी "ग़ालिब"
क्यों किसी का गिला करे कोई।

Friday, May 1, 2009

यह एक शुरुआत है जिसका अंत कोई नहीं जानता. लेकिन शुरुआत का यही तरिका होता है. एक ईमानदार शुरुआत. आईये मेरे साथ बैठ कर कुछ सुकून की बातें हों, कुछ बगावत

जुल्फों से आ रही थी महक जाफरान की,
मत पूछ क्या घड़ी थी मेरे इम्तहान की।
आबरू से जा मिली है वो कागज की इक लकीर,
या खिंच गई है दोस्तों डोरी कमान की।
मेहनत खुलूस सादगी सच्चाई बांकापन,
इन जेवरों से सजती है लडक़ी किसान की।
बरसात के दिनों में कभी गांव जाके देख,
खुशबू अजीब होती है कच्चे मकान की।
महलों के साथ-साथ हो फुटपाथ का भी ख्याल,
तस्वीर एसे खींचीए हिंदोस्तान की।
मेरी गजल में अपनी ही धरती का हुस्न है,
क्यों बात करते हो उस आसमान की।



गुलाम हैं वे
गुलाम हैं वे जो डरते हैं
कमजोरों पतितों की खातिर
आवाज ऊंची करने से।
दास हैं वे जो नहीं चुनेंगे
घृणा, अपयश और निंदा के बीच
सही रास्ता लडऩे का
खामोशियों में सिमटने के बजाय
जरूरत है
सच्चाई के साथ सोचने की शुरुआत हो
गुलाम हैं वे जो नहीं करेंगे साहस
सबके बीच
सच का साथ देने का...

Saturday, April 25, 2009


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और दिल्ली चुप रही

हाथी की नंगी पीठ पर
घुमाया गया दाराशिकोह को गली-गली
और दिल्ली चुप रही

लोहू की नदी में खड़ा
मुस्कुराता रहा नादिर शाह
और दिल्ली चुप
रही
लाल किले के सामने
बन्दा बैरागी के मुँह में डाला गया
ताजा लहू से लबरेज अपने बेटे का कलेजा
और दिल्ली चुप रही

गिरफ्तार कर लिया गया
बहादुरशाह जफर को
और दिल्ली चुप
रही
दफा हो गए मीर गालिब
और दिल्ली चुप
रही
दिल्लियाँ
चुप रहने के लिए ही होती हैं हमेशा
उनके एकान्त में
कहीं कोई नहीं होता
कुछ भी नहीं होता कभी भी शायद

Tuesday, April 14, 2009

विष्‍णु प्रभाकर

विष्‍णु प्रभाकर जी के इस दुनिया को अलविदा कहने से हिंदी का जो कोना खाली हुआ है वह कभी नहीं भर सकता। अब आवारा मसीहा हमेशा के लिए एक ऐसी राह पर चला गया जिस पर से कोई वापस नहीं आता। मेरठ खडी बोली रिजन के लिए तो ये वैसे भी दोहरा आघात है। वे मीरांपुर की मिटटी में पैदा हुए और यहां से हिंदी के देशव्‍यापी पटल पर जदोजहद की। शरत चंद्र की जीवनी पर आवारा मसीहा जैसी अमर रचना लिखने वाला यह रत्‍न नए रचनाकारों को बहुत याद आयेगा क्‍योंकि इन लागों के लिए ये पिता समान थे। प्रेमचंद के युग से लेकर अब तक का सारा अनुभव प्रभाकर जी ने कितनी खुबी से लिखा वह कालजयी है। सोच में गांधीवादी और विचारों से संघर्षमयी विष्‍णु जी से मेरठ की जो यादें बाबस्‍ता हैं वे उनकी हमेशा याद कराती रहेंगी। आलोचना में नामवर सिंह जैसे दिग्‍गज का शिकार बनने वाले विष्‍णु जी ने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि कोई क्‍या कहेगा यही तो है उनका सच्‍चा संघर्ष। अरे हिंदी के लाल आप को हम यूं भूला न पाएंगे।

Saturday, April 4, 2009

यह क्‍या है

यह एक अचरज भरी घटना थी कि पाकिस्‍तान के पश्‍चिमोत्‍तर सीमांत इलाके में महज 17 बरस की युवती को इश्‍क करने की कीमत अपने शरीर पर बेरहम चाबूकों के निशान खाकर सहनी पडी। उसे सरेआम 34 कोडे लगाए गए और इस बर्बर काम में उसका भाई भी शामिल था। एक पल के लिए ऐसा लगा कि दु‍निया के बहुतसे हिस्‍सों में अभी भी कबिलाई शासन है और कुछ कटटरपंथी लोग अपने कायदे कानूनों को वहां रहने वाले लोगों पर थोपते हैं। कुछ दिन पहले विश्‍व महिला दिवस मनाया गया और कुछ संभ्रांत ख्‍वातीनों को इस तरह पेश किया जैसे कि औरत की सारी बेडियां टूट गईं और अब सारी महिलाएं महफूज हैं लेकिन इस तरह की वारदात जब भी कहीं घटती हैं तो सच्‍चाई सारी इंसानी कौम को बेआबरू कर देती है। ता‍लिबान हो या विश्‍व का कोई भी कोना अगर अपनी ऐसी तस्‍वीर पेश करता हो तो लगता है कि क्‍या औरत, बहन और हर वो रिश्‍ता जो फीमेल जैंडर से जुडा हो पाप है।
इस घटना के बाद अस्‍मां जहांगीर का जो ब्‍यान आया था वह शायद ठीक ही है कि इस युवती की पुस्‍त पर पडने वाला एक एक कोडा सारी इंसानी कौम की पुस्‍त पर पडा चाबूक है। और इसे सहना नाकाबिले बरदाश्‍त है।

Saturday, March 28, 2009

चुपचाप हैं और क्‍या

सभागार की
ये पुरानी दरी
गालिब के
किसी शेर के साथ
बुनी गई होगी -
कम से कम
दो शताब्दी पहले।
’दर‘ का ’दर्द‘ से
होगा जरूर
कोई तो रिश्ता
’दायम पडा हुआ
तेरे दर पर
नहीं हूँ मैं -
कह नहीं सकती
बेचारी दरी।
जूते-चप्पल झेलकर भी
हरदम सजदे में बिछी
धूल फाँकती सदियों की
मसक गई है ये जरा-सी
जब कभी खिंच जाती है
सभा लम्बी
राकस की टीक की तरह
धीरे से भरती है
शिष्ट दरी
नन्हीं-मुन्नी एक
अचकचाती-सी
उबासी
पुराने अदब का
इतना लिहाज है उसे,
खाँसती भी है तो धीरे से!
किरकिराती जीभ से रखती है
होंठ ये
लगातार तर
किसी पुराने चश्मे के काँच-सी-धुँधली,
किसी गंदुमी शाम-सी धूसर
सभागार की ये पुरानी दरी
बुनी गई होगी
गालिब के किसी शेर की तरह
कम-से-काम
दो शताब्दी पहले।
नई-नई माँओं को
जब पढने होते हैं
सेमिनार में पर्चे
पीली सी साटन की फालिया पर
छोड जाती हैं वे बच्चे
सभागार की इस
दरी दादी के भरोसे।

Thursday, March 26, 2009

दिले नादां तुझे हुआ क्‍या है

पाकिस्‍तान की मकबूल गजल गायिका फरीदा खानम ने दहशत के माहौल में गायिकी से तौबा कर ली है। परेशान करने वाले हालात पर वे कहती हैं कि गमजदा होकर वे मायूस हैं और चाह कर भी गायन से दूर हैं। दिलों पर राज करने वाली इस गायिका का दर्द वास्‍तव में दिल को ठेस पहुंचाता है। अमन की बात करने वाली हकूमत के मुंह पर एक तमाचा है। जैसा कि उन्‍होंने कहा है कि वे हिंदोस्‍तां में आकर गाना तो चाहती हैं पर माहौल तो ठीक हों। ऐसे समय जब हम और आप दहशहत में जी रहे हों मुझे गाने की इच्‍छा नहीं होती। फरीदा ने साफ साफ सियासत को निशाना बनाते हुए कहा कि अगर ऐसे हालत रही तो पा‍क में न तो फन बचेगा और न ही फनकार।

Sunday, March 22, 2009

एक तेरी नजर पड जाए बस

हर जलवे से एक दरस-ए-नुमू लेता हूँलबरेज़ कई जाम-ओ-सुबू लेतापड़ती है जब आँख तुझपे ऐ जान-ए-बहारसंगीत की सरहदों को छू लेता हूँ
हर साज़ से होती नहीं एक धुन पैदाहोता है बड़े जतन से ये गुन पैदामीज़ाँ-ए-नशात-ओ-गम में सदियों तुल करहोता है हालात में तव्जौ पैदा
सेहरा में जमाँ मकाँ के खो जाती हैंसदियों बेदार रह के सो जाती हैंअक्सर सोचा किया हुँ खल-वत में फिराकतहजीबें क्युं गुरूब हो जाती हैं
एक हलका-ए-ज़ंजीर तो ज़ंजीर नहींएक नुक्ता-ए-तस्वीर तो तस्वीर नहींतकदीर तो कौमों की हुआ करती हैएक शख्स की तकदीर कोई तकदीर नहीं
महताब में सुर्ख अनार जैसे छूटेसे कज़ा लचक के जैसे छूटेवो कद है के भैरवी जब सुनाये सुरगुन्चों से भी नर्म गुन्चगी देखी है
नाजुक कम कम शगुफ्तगी देखी हैहाँ, याद हैं तेरे लब-ए-आसूदा मुझेतस्वीर-ए-सुकूँ-ए-जिन्दगी देखी है
जुल्फ-ए-पुरखम इनाम-ए-शब मोड़ती हैआवाज़ तिलिस्म-ए-तीरगी तोड़ती हैयूँ जलवों से तेरे जगमगाती है जमींनागिन जिस तरह केंचुली छोड़ती है

दिल है के

न अब पहले से लोग मिलते हैं
न ही वो वफा की बातें रही
में हुं और मेरा गुजरा हुआ जमाना
तु बता नई दुनिया के रहने वाले
क्‍या है फख्‍त तेरा फसाना।
दिन रात का पता नहीं बे कैफ से हैं
एक अजीब सी उमस में जी रहे हैं
अब तुम से क्‍या कहें बताना।
अजीब है सब और अपने पंजों में कैद है
रिहा होने के लिए मचल रहे है और क्‍या।

Friday, March 6, 2009


गजल के परस्तारों के नाम इकबाल का कलाम पेश कर रहे हैं उम्मीद हैं कि पुरकशिश होगा

एक

एक अजीब सी कशमकश?

ठहरी-ठहरी सी तबीयत में रवानी आई,

आज फिर याद मुहब्बत की कहानी आई।

आज फिर नींद को आंखों से बिछड़ते देखा,

आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई।

मुद्दतों बाद पशेमां हुआ दरिया हमसे,

मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई।

मुद्दतों बाद चला उनपे हमारा जादू

मुद्दतों बाद हमें बात बनानी आई।

दो

प्यास जो कभी दरिया कभी समंदर और कभी फुल की पत्ती पर ठहरी ओंस को अपने आगोश में पिनाह करती है

प्यास दरिया की निगाहों में छुपा रक्खी है,

एक बादल से बड़ी आस लगा रक्खी है।

तेरी आंखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं,

इन चरागों ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है।

क्‍यूं न आ जाए महकने का हुनर लफ्जों को,

तेरी चिठ्ठी जो किताबों में छुपा रक्खी है।

खुद को तन्हा न समझ लेना नए दीवानों,

खाक सहराओं की हमने भी उड़ा रक्खी है।

उम्मीद है कि आपको ये अशआर पसंद आएंगे और दिल की गहराईयों में उतर कर मरहम का काम करेंगे अगली पाती तक खुदा हाफिज

Monday, March 2, 2009

Katrina Kaif Interview

Katrina Kaif was born on July 16th 1984. She is one of eight siblings who are all girls. Her mother is of Caucasian-British decent and her father who is originally from Kashmir, India is now also a Britain Native.
Katrina Kaif was raised mostly in Hawaii and started modeling at the age of 14 in a jewelry campaign, which turned into a career and her spending most of her time in London modeling for various companies.
She was discovered by film maker Kaizad Gustad while she was modeling and she landed a role in the Bollywood film ‘Boom’, getting her first big break in the film industry.
After arriving in India she was flooded with modeling contracts due to her innocent looking face, hour glass figure and gorgeous look. The offers came from companies like LG, Cola, Favicol and Lakme which is the commercial that got her noticed. Most of her early work was with photographer Atul Kasbekar.
She wasn’t affected by moving from country to country and stated that no matter where you are from the bottom line is that everyone wants to be loved respected and cared for.
Unlike other fellow outsiders of India Katrina Kaif had no problems getting a visa to stay there. After public criticized by boyfriend Salman Khan, she is currently perfecting her Hindi and despite being linguistically challenged at first with the native tongue, she was still offered roles in Bollywood films. Katrina Kaif also takes dance lessons furthering her assimilation into the Bollywood culture.
Critics were not crazy about her first film ‘Boom’ and audiences felt the same way. She went on to make two other Telegu films ‘Malliswari’ and ‘Pidugu’ which finally got her noticed. She made Rs.70 Lakhs from ‘Malliswari’ making her one of the highest paid actresses during a south Indian film debut.

Heart, we will forget him

Heart, we will forget him,
You and I, tonight!
You must forget the warmth he gave,
I will forget the light.
When you have done pray tell me,
Then I, my thoughts, will dim.
Haste! ‘lest while you’re lagging
I may remember him!
Emily Dickinson

Sunday, March 1, 2009

Don’t stop, don’t sit, and never succumb!

When dreams come into life
I use to sleep in my bed,
Life is a beautiful book
I use to read in the night,
Did you learn common thing to life and book?

Heart was a nest of beautiful songs
And life was a singer of book,
Joy in the form of pain
Only one thing I could gain,
Did you learn common thing to joy and pain?

Time gives us vanishing force
It will eat up all late and soon,
Remembrances will remain forever
This is the valuable asset of mankind.
Did you have common thing both of it?

On the onset of life’s beautiful course
A thorny way is to cover of course,
When destination looks like hard
March forward like a crazy wind
Don’t stop, don’t sit, and never succumb!
Shiv sagar

Friday, February 20, 2009

Stopping By Woods on a Snowy Evening

By Robert Frost
Whose woods these are I think I know. His house is in the village though; He will not see me stopping here To watch his woods fill up with snow.
My little horse must think it queer To stop without a farmhouse near Between the woods and frozen lake The darkest evening of the year.
He gives his harness bells a shake To ask if there is some mistake. The only other sound's the sweep Of easy wind and downy flake.
The woods are lovely, dark and deep. But I have promises to keep, And miles to go before I sleep, And miles to go before I sleep.

Here I start

I started my Blog as a novice student holds pencil first time. Here after I have to cover a path of long life. It’s my duty to envelop all responsibilities of a journalist first of all. Being a columnist I would like to present all new and unknown matters for my all readers. Shiv Sagar