भाजपा तो टूटती ही जा रही है और राजनाथ हैं कि अडे हुए हैं और कह रहे हैं कि वे पार्टी को बिखरने नहीं देंगे। शायद ये सब हवाई है। और अब तो यशवंत भी चुप्पी तोड बोल ही पडे कि कंधार मामले कि पार्टी के सभी बडे नेताओं को जानकारी थी। यशवंत सिन्हा ने कहा कि आडवाणी केबिनेट की मीटिंग में शामिल थे और हर फैसले के बारे में जानते थे। लेकिन भाजपा तो हीरो बनना चाहती थी और लोगों की साहानुभूति हासिल करना चाहती थी मगर कहते है कि घर का भेदी ही लंका को ढहा देता है। जसवंत का साथ देना सही भी था क्योंकि पार्टी में दोनों की लगभग वही हालत थी जो उन्हें अखरती थी। यशवंत ने खुलकर कहा कि किताब लिखना कोई अपराध नहीं है सभी अपनी बात कह सकते हैं लेकिन पार्टी को तो एक अदद मौके का इंताजार था कि बाहर का रास्ता दिखा दिया। शौरी भी बगावती हैं, कुलकर्णी भी राम- राम कह गए और क्या चाहते हैं राजनाथ ये वही जाने पर पार्टी तो गई।
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