विष्णु प्रभाकर जी के इस दुनिया को अलविदा कहने से हिंदी का जो कोना खाली हुआ है वह कभी नहीं भर सकता। अब आवारा मसीहा हमेशा के लिए एक ऐसी राह पर चला गया जिस पर से कोई वापस नहीं आता। मेरठ खडी बोली रिजन के लिए तो ये वैसे भी दोहरा आघात है। वे मीरांपुर की मिटटी में पैदा हुए और यहां से हिंदी के देशव्यापी पटल पर जदोजहद की। शरत चंद्र की जीवनी पर आवारा मसीहा जैसी अमर रचना लिखने वाला यह रत्न नए रचनाकारों को बहुत याद आयेगा क्योंकि इन लागों के लिए ये पिता समान थे। प्रेमचंद के युग से लेकर अब तक का सारा अनुभव प्रभाकर जी ने कितनी खुबी से लिखा वह कालजयी है। सोच में गांधीवादी और विचारों से संघर्षमयी विष्णु जी से मेरठ की जो यादें बाबस्ता हैं वे उनकी हमेशा याद कराती रहेंगी। आलोचना में नामवर सिंह जैसे दिग्गज का शिकार बनने वाले विष्णु जी ने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि कोई क्या कहेगा यही तो है उनका सच्चा संघर्ष। अरे हिंदी के लाल आप को हम यूं भूला न पाएंगे।
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