Saturday, May 23, 2009

आप के लिए

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दिल की दवा करे कोई
शर'अ-ओ-आईन पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई
चाल जैसे कड़ी कमाँ का तीर
दिल में ऐसे के जा करे कोई
बात पर वाँ ज़ुबान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई
न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई
रोक लो गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ग़लत करे कोई
कौन है जो नहीं है हाजतमंद
किसकी हाजत रवा करे कोई
क्या किया ख़िज्र ने सिकंदर से
अब किसे रहनुमा करे कोई
जब तवक़्क़ो ही उठ गयी "ग़ालिब"
क्यों किसी का गिला करे कोई।

Friday, May 1, 2009

यह एक शुरुआत है जिसका अंत कोई नहीं जानता. लेकिन शुरुआत का यही तरिका होता है. एक ईमानदार शुरुआत. आईये मेरे साथ बैठ कर कुछ सुकून की बातें हों, कुछ बगावत

जुल्फों से आ रही थी महक जाफरान की,
मत पूछ क्या घड़ी थी मेरे इम्तहान की।
आबरू से जा मिली है वो कागज की इक लकीर,
या खिंच गई है दोस्तों डोरी कमान की।
मेहनत खुलूस सादगी सच्चाई बांकापन,
इन जेवरों से सजती है लडक़ी किसान की।
बरसात के दिनों में कभी गांव जाके देख,
खुशबू अजीब होती है कच्चे मकान की।
महलों के साथ-साथ हो फुटपाथ का भी ख्याल,
तस्वीर एसे खींचीए हिंदोस्तान की।
मेरी गजल में अपनी ही धरती का हुस्न है,
क्यों बात करते हो उस आसमान की।



गुलाम हैं वे
गुलाम हैं वे जो डरते हैं
कमजोरों पतितों की खातिर
आवाज ऊंची करने से।
दास हैं वे जो नहीं चुनेंगे
घृणा, अपयश और निंदा के बीच
सही रास्ता लडऩे का
खामोशियों में सिमटने के बजाय
जरूरत है
सच्चाई के साथ सोचने की शुरुआत हो
गुलाम हैं वे जो नहीं करेंगे साहस
सबके बीच
सच का साथ देने का...