Friday, March 6, 2009


गजल के परस्तारों के नाम इकबाल का कलाम पेश कर रहे हैं उम्मीद हैं कि पुरकशिश होगा

एक

एक अजीब सी कशमकश?

ठहरी-ठहरी सी तबीयत में रवानी आई,

आज फिर याद मुहब्बत की कहानी आई।

आज फिर नींद को आंखों से बिछड़ते देखा,

आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई।

मुद्दतों बाद पशेमां हुआ दरिया हमसे,

मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई।

मुद्दतों बाद चला उनपे हमारा जादू

मुद्दतों बाद हमें बात बनानी आई।

दो

प्यास जो कभी दरिया कभी समंदर और कभी फुल की पत्ती पर ठहरी ओंस को अपने आगोश में पिनाह करती है

प्यास दरिया की निगाहों में छुपा रक्खी है,

एक बादल से बड़ी आस लगा रक्खी है।

तेरी आंखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं,

इन चरागों ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है।

क्‍यूं न आ जाए महकने का हुनर लफ्जों को,

तेरी चिठ्ठी जो किताबों में छुपा रक्खी है।

खुद को तन्हा न समझ लेना नए दीवानों,

खाक सहराओं की हमने भी उड़ा रक्खी है।

उम्मीद है कि आपको ये अशआर पसंद आएंगे और दिल की गहराईयों में उतर कर मरहम का काम करेंगे अगली पाती तक खुदा हाफिज

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