हर जलवे से एक दरस-ए-नुमू लेता हूँलबरेज़ कई जाम-ओ-सुबू लेतापड़ती है जब आँख तुझपे ऐ जान-ए-बहारसंगीत की सरहदों को छू लेता हूँ
हर साज़ से होती नहीं एक धुन पैदाहोता है बड़े जतन से ये गुन पैदामीज़ाँ-ए-नशात-ओ-गम में सदियों तुल करहोता है हालात में तव्जौ पैदा
सेहरा में जमाँ मकाँ के खो जाती हैंसदियों बेदार रह के सो जाती हैंअक्सर सोचा किया हुँ खल-वत में फिराकतहजीबें क्युं गुरूब हो जाती हैं
एक हलका-ए-ज़ंजीर तो ज़ंजीर नहींएक नुक्ता-ए-तस्वीर तो तस्वीर नहींतकदीर तो कौमों की हुआ करती हैएक शख्स की तकदीर कोई तकदीर नहीं
महताब में सुर्ख अनार जैसे छूटेसे कज़ा लचक के जैसे छूटेवो कद है के भैरवी जब सुनाये सुरगुन्चों से भी नर्म गुन्चगी देखी है
नाजुक कम कम शगुफ्तगी देखी हैहाँ, याद हैं तेरे लब-ए-आसूदा मुझेतस्वीर-ए-सुकूँ-ए-जिन्दगी देखी है
जुल्फ-ए-पुरखम इनाम-ए-शब मोड़ती हैआवाज़ तिलिस्म-ए-तीरगी तोड़ती हैयूँ जलवों से तेरे जगमगाती है जमींनागिन जिस तरह केंचुली छोड़ती है
Sunday, March 22, 2009
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