हाथी की नंगी पीठ पर
घुमाया गया दाराशिकोह को गली-गली
और दिल्ली चुप रही
लोहू की नदी में खड़ा
मुस्कुराता रहा नादिर शाह
और दिल्ली चुप
रही
लाल किले के सामने
बन्दा बैरागी के मुँह में डाला गया
ताजा लहू से लबरेज अपने बेटे का कलेजा
और दिल्ली चुप रही
गिरफ्तार कर लिया गया
बहादुरशाह जफर को
और दिल्ली चुप
रही
दफा हो गए मीर गालिब
और दिल्ली चुप
रही
दिल्लियाँ
चुप रहने के लिए ही होती हैं हमेशा
उनके एकान्त में
कहीं कोई नहीं होता
कुछ भी नहीं होता कभी भी शायद
Saturday, April 25, 2009
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5 comments:
ये बेदिल दिल्ली है.......सच.......१
nice poem-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
dilli me dil nahin hai, narayan narayan
ब्लौग जगत में आपका स्वागत है, शुभकामनायें.
Jisne bhi dekha hai bus aaina dekha hai,
dilli ka dard to bus dilwalo ne dekha hai.
Dost ye dilli hai......yahan swarth ki chadar aaudh kar dharm ki rajniti ki jati hai.....aur jab jalta hai kisi ka aashiya to dilli bus chup rehti hai.......kyunki sochti hai dilli....... lagi hai kisi ke ghar main aag to lagne do... uthta hai dhuan kahi to uthne do.....kiski maang ka sindur ujada kis maa ka laal gujra padh lenge kal log akhbar main.................
Nice post shiv. keep on posting.
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